अर्थ...
घन घोर घटा ये सुहानी..
नील वर्ण सा गगन मगन है..
सूर्य किरणे भी केसरिया सारी..
एक ही वृक्ष की छांया में भींजे
त्रिकाल संध्या व स्मृति के सेतु..
सर्प दंश सा तक्षक समय है...
धीरे धीरे से बदलता हुआ ये..
हर एकान्तर ऋतु सा मन ही मंगल..
मंगल सी मुहरत .. है श्यामली सूरत..
श्यामल रंग सी सुन्दर धरती पर..
वर्षा की बूंदे गिरती .. है.. यूँ जो..
मेरे ही भूत का भविष्य में कारन..
प्रत्यक्ष मेरे ही .. अंतर में ..
जो रुका है .. तांडव..
गाज बीज .. सी गूँजे बिजलिया..
हिम खंड से कंपित हो .. उठती
है..
भयभीत मन में..
काली गगन घोर घटा जो उमटती...
मृदंग नाद नृत्य से जगत की..
चहु दिशाए सजी सजनिया..
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